37. पर क्या गरीबी और बेरोज़गारी को दूर करने के लिए सरकार को स्वयं ही योजनाएं नही बनानी चाहिए?
नही, हमारा मानना है की ज्यादातर सरकारी योजनाएं अक्षम, व्यर्थ और भ्रष्टाचार से भरी होती हैं. पहले तो इनको चलाने के लिए भारी टैक्स लगाए जाते हैं, जो पैसा पूँजी बनकर मुनाफा और रोज़गार बनके सामने आता वो सरकारी खाज्हने में चला जाता है, टैक्स उगाही में भ्रष्टाचार, सही नीतियों और योजनाओं को न चुनना और योजना के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार करके पूरी योजना और उसके पीछे विकास की भावना को मटियामेट कर दिया जाता है.
भारत सरकार का इस साल का बजट ५ लाख करोड़ से ज्यादा का था, ज़रा सोचिये अगर ये पैसा जनता के पास होता तो क्या हमारे देश की तस्वीर थोडी अलग होती. ६० सालों की कल्याणकारी कार्यक्रमों और योजनाओं की "सफलता" वजह से आज हम प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (क्रय शक्ति समानता के आधार पर) १७९ देशों में १२६ वें स्थान पर खड़े हैं.
इससे साफ़ पता चलता है की हमारी आर्थिक नीतियाँ ग़लत रही हैं, निजी उद्योगों को बढ़ावा देकर की हम गरीबी और बेरोज़गारी को ख़त्म कर सकते हैं.
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13 December 2008
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