32. सभी वोटरों को छः सौ रूपए (रु. ६००/-) प्रति माह की सब्सिडी देने के पीछे क्या तर्क है?
यह आंकडा भारत और सभी राज्य सरकारों द्वारा दी गई कुल सब्सिडी में कुल वोटरों की संख्या को भाग देने से निकाली गई है, सरकार द्वारा सब्सिडी चीज़ों की कीमतें कम रखने के लिए दी जाती हैं इनके दो प्रकार होते हैं: मेरिट सब्सिडी और नॉन-मेरिट सब्सिडी, मेरिट सब्सिडी का लाभ पूरे देश को मिलता है वहीं नॉन-मेरिट सब्सिडी वर्ग विशेष के लिए दी जाती है, वर्तमान में सर्वाधिक खर्च नॉन-मेरिट सब्सिडियों पर हो रहा है.
वर्ष १९९४-९५ में नॉन-मेरिट संसिदी सकल घरेलू उत्पाद का दस प्रतिशत थी और इस आंकडे को आधार मानकर यदि हम आज के सकल घरेलू उत्पाद से भाग दें तो यह करीब ४ लाख करोड़ रूपए आएगा, इस आंकड़े को ४० करोड़ (वोटर जो असल में वोट करते हैं) से भाग देने पर १०,०० रूपए साल के निकलते हैं अब इसको १२ से अगर भाग दें तो प्रति माह ८३३ रूपए का आंकडा बनता है, हमने आने वाले चुनावों में वोटरों की संख्या में होने वाली बढोतरी को ध्यान में रखकर इसे ६०० रु. प्रति माह रखा है.
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13 December 2008
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