12 December 2008

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल और उनके जवाब (23-43)


प्रश्न संख्या १ से २२ के लिए यहाँ क्लिक करें !

23. क्या आप समान नागरिक संहिता लागू करेंगे?

नही, सभी धर्मों के अपने-अपने पर्सनल कानून हैं और लोगों के निजी मामलों जैसे शादी, तलाक, आदि के लिए इन सभी को हटाकर नया कानून लगाना सही नही होगा.
पर, हम एक आधुनिक पर्सनल कोड लाएगे जो आपसी सहमती पर आधारित होगा, यह एक कांट्रेक्ट (अनुबंध) की तरह होगा और कोर्ट में मान्य होगा, सभी विवादों का हल इसी के आधार पर निकाला जाएगा, उदहारण के लिए शादी के लिए इस कोड में शादी के बाद खर्चों को किस प्रकार बांटा जाए, बच्चों का लालन-पालन किस प्रकार किया जाएगा, तालक किस सूरत में लिया जा सकेगा, तलाक के बाद बच्चों की ज़िम्मेदारी किसको मिलेगी आदि बातों का समावेश होगा. दंपत्ति को इस कोड पर आधारित अनुबंध को कोर्ट में रजिस्टर (पंजीकृत) कराना होगा, यदि वो ऐसा नही करते हैं तो शासन उनकी शादी को अमान्य मानेगा और उनको दो अलग व्यक्ति ही मानेगा.
व्यक्ति को इस बात की भी स्वतंत्रता होगी की वो किसी भी कोड को न अपनाए, पर अगर व्यक्ति नए कोड को अपनाता ह तो उसका धार्मिक कोड उसपर लागो नही होगा.

24. आप प्रवासी भारतीयों को मतदान का अधिकार क्यों देना चाहते हैं?
प्रवासी भारतीय दूसरे देशों में होते हुए भी भारत से सदा जुडाव महसूस करते हैं, उनकी जड़ें तो भारत में ही हैं. विदेश जाकर भी मौद्रिक और बौधिक सम्पदा निरंतर भारत में वापस भेजते हैं. भारत भेजे गए डॉलरों का आंकडा अरबों में जाता है.
इसके अलावा वे दूसरे देशों में हमारे अनौपचारिक सांस्कृतिक राजदूत हैं उनकी उपलब्धियों से हमारा सर भी गर्व से ऊँचा होता है, क्या देश की सेवा करने वाले, देश का नाम ऊँचा करने वाले लोगों को मतदान के अधिकार से वंचित रखना उचित है? राजनैतिक रूप से उनकी संख्या गौण है, हमारा ये कदम तो सर्वथा उनके प्रति हमारे आदर और प्यार का प्रतीक मात्र होगा, जो उनके साथ-साथ हमें भी भारतीय होने का एहसास करवाएगा.

25. व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ावा देने से समाज में अनैतिकता नही बढेगी?
यदि दो वयस्क आपसी सहमति से कुछ करना चाहते हैं तो समाज और सरकार का कोई हक नही बनता की उन्हें रोकें, सभी को अपने हिसाब से रखने की छूट हो जब तक वो किसी नुकसान नही पहुंचाते. व्यक्तिगत पसंद-नापसंद पर नैतिकता थोपना सही नही है, अनैतिकता का सवाल तभी उठता है जब किसी कम को ज़ोर-ज़बरजस्ती से करवाया गया है या धोखे से.
अगर कोई व्यक्ति पैसा कमाने के लिए स्वेच्छा से सेक्स बेचना चाहते हैं और कोई उसको खरीदना चाहता है, तो ये उनका मामला है, दूसरों को अधिकार नही है कि अपने मूल्य दूसरों पर लादें. पर अगर कोई ज़बरजस्ती किसी से वेश्यावृत्ति करवाना चाहता है तो वह एक अपराध होगा और सरकार और समाज के अंतर्गत आ जाएगा, अन्यथा नही.
कुछ लोगों का मानना है कि इस तरह कि स्वतंत्रता भारतीय संस्कृति के विरुद्ध होगी, हमारा मानना है कि यह व्यक्ति के ऊपर है कि वो किस संस्कृति को अपनाना चाहता है, इसको थोपा नही जाना चाहिए, सभी बिना ज़ोर और धोखे के हसीं-खुशी रहें इसमें ही समृद्धि है.

26. ऐसा माना जाता है कि भारत के अरबों रुपए काले धन के रूप में विदेशी बैंकों में जमा हैं, इस पैसे को वापस भरत लाने के लिए आपके पास क्या योजना है?
काले धन को वापस लाने से पहले हमें यह समझ लेना चाहिए की इसकी उत्पत्ति कैसे होती है, भारत में काला धन अधिक टैक्स दरों और हर क्षेत्र में सरकार की दखलअंदाजी के कारण है, इमानदार आजीविका के रास्ते में इतनी सारी सरकारी रुकावटें खड़ी कर दी जाती हैं की कोई रिश्वत के अलावा कोई दूसरा रास्ता नज़र नही आता, कभी सब्सिडी के नाम पर तो कभी लोक निर्माण के नाम पर दोनों हाथों से हमारे टैक्स को लूटा और बरबाद किया जाता है, और हमारी न्याय-प्रणाली और अन्य संस्थाएँ इससे निपटने के लिए समर्थ नही हैं. चुनावों में होने वाले खर्चे भी इसका एक प्रमुख कारण हैं.
इन सभी का समाधान करके हम अपने आप काले धन को कम कर पाएंगे, जैसे जागो पार्टी हर क्षेत्र में सरकारी दखल-अंदाजी ख़त्म कर देगी, टैक्स की दरों को कम करेगी, निजी उद्यम को हर तरह से बढ़ावा देगी, और सरकारी खर्चे पर चुनावों के प्रचार को भी लागू करेगी.
जहाँ तक उस पैसे का सवाल है व्यक्ति बिना किसी सवाल-जवाब के उसे देश में १०% टैक्स देकर ले आए और निजी क्षेत्र में निवेश कर दे, जिससे देश का पैसा देश में होगा और यहाँ के लोगों को रोज़गार और आजीविका देने के काम आएगा.

27. आप बलात्कारियों के लिए मृत्युदंड का समर्थन करते हैं, क्यों?
वो इसलिए की बलात्कार हत्या से ज्यादा गंभीर है, पीड़ित महिला की हत्या की जाती है शारीरिक रूप से नही पर मानसिक और भावनात्मक रूप से. बलात्कार के बाद का जीवन एक क्रूर यातना बन जाता है जहाँ घावों को रोज़ कुरेदा जाता है और उनमे नमक छिड़का जाता है, हत्या भी इसके सामने बौनी लगती है.
और तो और भारत में सामाजिक कलंक के डर से बलात्कार की ९९% घटनाएँ कभी सामने ही नही आ पाती.
अपराधी इस बात को जानता है और निडर होकर अपराध करता है, जिस दिन से बलात्कारियों को फाँसी दी जाने लगेगी अपराधी अपराध करने से पहले सौ बार सोचेगा, महिलाओं के मनोबल में, आत्म-अवधारणा में और सामाजिक प्रतिष्ठा में जो बदलाव आएगा उसके तो क्या कहने.

28. ३ महीनों में कोर्ट के फैसले आप कैसे सुनिश्चित करेंगे? और इतने सारे लंबित मामले हैं उनका क्या होगा?
वर्तमान में देश की सभी अदालतों में कुल ३ करोड़ मामले लंबित हैं, जिसमे से सुप्रीम कोर्ट में ४०,०००, सारे हाई कोर्टों में ३० लाख और निचली अदालतों में लगभग २.६० करोड़ मामले हैं.
इसका निपटारा हम निम्नलिखित तरीके से करना चाहते हैं
१. जनसंख्या के अनुपात में जजों की संख्या को लाना: वर्तमान में भारत में प्रति १० लाख लोगों पर १२ जज हैं, जबकि यू.के. में यह ५१ है, ऑस्ट्रेलिया में ५८, कनाडा में ७५ और अमेरिका में १०७. भारत को इस समय यह अनुपात ५० के करीब चाहिए, जिससे नए कोर्ट बनाये जा सकें और मौजूदा कोर्टों को २-३ परियों में २४ घंटे संचालित किया जा सके.
२. कोर्टों के २ महीने के अवकाश को ख़त्म करना.
३. सारी रिक्तियों को तुंरत भरना.
४. स्थगन को बहुत ही कठिन और खर्चीला बनाना जिससे दोनों पक्ष मामले को ताल ना पाएं.
५. गवाहों और पक्षों के बयानों की विडियो रिकार्डिंग को सबूत के तुअर पर मान्यता देना.
६. विशेष अदालतों के लिए विशेष-प्रशिक्षण प्राप्त जज.
७. मध्यस्थों और अदालत-पूर्व समझौते को अधिक प्रोत्साहन देना.
८. 'संदेह से परे' प्रणाली को बदलकर 'संभावनाओं की प्रधानता' प्रणाली करना.
९. एक समय सीमा के बाद यदि मामला कोर्ट में लंबित रहे तो उसके लिए जज को उत्तरदाई बनाना.
१०. कोर्ट के सभी रिकॉर्ड और प्रक्रियाओं का कम्प्यूटरीकरण.
११. सिर्फ़ एक अपील का प्रावधान.
यहाँ ध्यान देने योग्य ये बात है की इस प्रकार के कई सुझाव पूर्व में कई समितियों और आयोगों द्वारा दिए जा चुके हैं, पर राजनैतिक कमोजोरियों और स्वार्थों के लिए इनको हमेशा दरकिनार किया जाता रहा.
इन सभी उपायों के अलावा एक उपाय यह भी है कि हम पुराने और गैर-ज़रूरी अधिनियमों और कानूनों को ख़त्म करें और इनसे होने वाले मुकदमों से बच जाएँ. इस समय इस तरह के कानूनों की कुल संख्या ३०,००० के करीब है, जैसे समाजवाद से प्रभावित भूमि अधिग्रहण के कानून, सामाजिक बदलाव लाने के लिए थोपे गए इन कानूनों से गरीब जनता का भला तो कुछ हुआ नही उल्टा सरकार जनता का पैसा मुक़दमे लड़ने में बरबाद करती रही.
जागो पार्टी शुरू से यह कहती आई है की व्यापार करना सरकार का काम नही वो व्यापारियों के लिए छोड़ देना चाहिए और सरकार को देश के लिए बेहद ज़रूरी कामों और सेवाओं पर ध्यान देना चाहिए, हमारा मानना है की भारत का काम इन कानूनों के बिना ज्यादा अच्छे से चलेगा और इनको हटाना ही श्रेष्ठ विकल्प है. जागो पार्टी सरकार में आते ही लंबित मामलों को आपसी समझौते द्वारा जल्दी से जल्दी निपटाएगी और उपरोक्त सभी बदलाव हमारे सिस्टम में लाएगी.

29. आप जजों द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार को कैसे रोकेंगे?
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी किए गए वैश्विक भ्रष्टाचार बैरोमीटर २००६ में ७७% भारतीयों ने माना की उनकी न्याय-पालिका में भ्रष्टाचार व्याप्त है और ३६% लोगों ने काम के बदले रिश्वत देने की बात स्वीकारी. इस परिपेक्ष में जागो पार्टी की प्रस्तावित योजना:
१. न्यायिक चयन प्रकिर्या एक स्वतंत्र चयन समिति द्वारा.
२. नियुक्तियों का आधार योग्यता, चयन के सभी नियम और मानदंड सार्वजानिक, केवल उन्ही उम्मीदवारों को शामिल किया जाएगा जिनकी क्षमता और इमानदारी का लंबा रिकार्ड हो.
३. स्थानान्तरण के मानदंड बिल्कुल स्पष्ट होंगे जिससे इमानदार और कर्तव्यनिष्ठ लोगों को परेशान ना किया जा सके.
४. जजों के विरुद्ध लगाए आरोपों की सघन जांच एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा करवाई जाए.
५. जजों को हटाने की प्रक्रिया आसान की जाएगी और यह बिल्कुल पारदर्शी और निष्पक्ष, सख्त मानकों वाली होगी, अगर वहाँ भ्रष्टाचार पाया जाता है तो जज पर मुकदमा भी चलाया जाएगा.
६. जजों द्वारा दिए गए निर्णयों के स्तर को जांचने के लिए एक समिति होगी जो औचक निरिक्षण करके वस्तुस्थिति से सरकार और जनता को अवगत करावाएगी. यदि किसी जज के आदेशों या निर्णयों में न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन पाया जाता है तो उसपर तुंरत कार्यवाही होगी.
७. यदि अपील के दौरान आदेश/निर्णय को बदलना पड़ता है तो जज के ख़िलाफ़ भी कार्यवाही की जाएगी.
८. जजों के वेतन, पेंशन आदि बाज़ार-मूल्यों पर और उनके काम के अनुसार दिया जाएगा.
९. न्यायिक प्रक्रिया में जजों के विवेक से लिए गए निर्णयों को कम से कम करना और उसके स्थान पर सभी निर्णय और सजाएं कानून में बदलाव करके स्पष्ट करना.
१०. कानूनों और अधिनियम की जटिलता और अनेकानेक संबधित कानूनों के फ़ैसला किसी भी ओर मुदा जा सकता है इसके कारण भी भ्रष्टाचार बढ़ता है. कानून को सरल बनाया जाएगा.
११. जैसा पहले भी कहा जा चुका है, समाजवाद पर आधारित कानून की आड़ लेकर कई लोग व्यवसायों और निजी उद्योगों को नुक्सान पहुँचाना (सही तौर पर पैसे वसूलना) चाहते हैं, धंधे को ध्यान में रखकर कई व्यवसायी कोर्ट के बाहर समझौता करके अपनी जान छुडाते हैं, इस तरह के सभी कानूनों को हटा दिया जाएगा.

30. जहाँ दुनिया के कई देश मृत्युदंड को ख़त्म कर रहे हैं वहीं आप इसकी वकालत कर रहे हैं? क्या आप मानवीय दृष्टिकोण से दूर नही जा रहे?
कुल १९८ देशों में ९२ ने मृत्युदंड ख़त्म कर दिया है और बाकी १०२ में यह अब भी मौजूद है, हालाँकि इसका उपयोग कहीं कम कहीं ज्यादा होता है. यूरोपीय संघ के देश, एशिया-पेसिफिक के देश और लेटिन-अमेरिकी देशों ने इसको समाप्त किया है पर अमरीका, जापान, चीन, सिंगापुर और भारत कुछ ऐसे प्रमुख देश हैं जहाँ यह अस्तित्व में है. इस्लामी देशों जैसे पाकिस्तान, इरान, साउदी अरब, आदि में भी इसका उपयोग हो रहा है.
दुनिया भर के अधिकाँश सर्वे में ७०-८१% लोग हत्या और खासतौर पर आतंकवाद के लिए मृत्युदंड को सही मानते हैं. जागो पार्टी हत्या, आतंकवाद, बलात्कार, अपहरण और डकैती के साबित होने पर मृत्युदंड के लिए निम्नलिखित कारणों से पक्षधर है:
१. यदि कोई अपने स्वाथों और पूर्वाग्रहों के लिए किसी को मारने से नही हिचकता तो उसका जीवित रहना पूरे समाज के लिए खतरा है, उसको मृत्युदंड देना बिल्कुल सही है.
२. अमरीका में किए गए अध्ययनों से ये बात पता चली है कि एक मृत्युदंड १८ निर्दोषों की जान बचाने में सफल होता है, इससे साफ़ पता चलता है की मृत्युदंड अपराधियों में डर पैदा करता है.
३. इन्ही अध्ययनों से यह भी पता चला है की किसी जुर्म की सजा काटकर छूटे ६०% अपराधी दोबारा वही अपराध करते हैं, और ये ज्यादा क्रूरता और जघन्यता से किए जाते हैं जो समाज से बदला लेने और उसके प्रति गुस्से के साथ-साथ जेल में नए गुर सीखने को दर्शाते है, तो कारावास एक तरह का प्रशिक्षण स्कूल बन जाता है.
४. जो लोग मानवीय दृष्टिकोण की बात करके आजीवन कारावास की बात करते हैं वो यह क्यों भूल जाते हैं की जेल समाज/जनता के पैसे से चलती हैं और इस सामाजिक बोझ को धोने से अच्छा है उस पैसे को किसी सार्थक काम में लगाए जाए.
५. इसके अलावा इन लोगों को जेल में रखना भी सुरक्षित नही है, जैसा हमने मौलाना मसूद अजहर/कंधार विमान अपहरण में देखा, इससे सुरक्षा एजेंसीयों पर भी दबाव बढेगा.
६. जो लोग अपराधियों के मानवाधिकारों की बात करते हैं उन्हें यह भी याद रखना चाहिए की देश के करोड़ों निर्दोष लोगों के भी मानवाधिकार हैं.

31. भ्रष्टाचार को ख़त्म करना आपका एक प्रमुख मुद्दा है, आप यह कैसे करेंगे?
ट्रांसपेरेंसी इन्टरनेशनल द्वारा २००७ में करवाए गए एक सर्वे में ३२% भारतियों ने रिश्वत देना स्वीकार, जब यह आंकडा कई देशों में २% के पास था. पूर्व प्रधान मंत्री स्व. राजीव गाँधी ने कहा था की सरकार द्वारा खर्च किए गए प्रत्येक रुपए का सिर्फ़ १५ पैसा ही जनता तक पहुँचता है बाकी ८५ पैसा भ्रष्टाचारियों की जेबों में जाता है.
सरकारी भ्रष्टाचार दो प्रकार से होता है:
१. परितोषण: जनता का काम करने के बदले अधिकारियों/कर्मचारियों द्वारा रिश्वत मांगना. यह समस्या इसलिए उत्पन्न होती है क्योंकि निजी क्षेत्र की तरह यहाँ ग्राहक की संतुष्टि अधिकारियों/कर्मचारियों की तनख्वाह और अन्य सुविधाओं से नही जुड़ी हुई है, उनको एक तारीख को पैसा मिलना ही है फ़िर चाहे वो कैसा भी काम करें.
२. दुर्विनियोजन: सरकारी योजनाओं से जनता के लिए आने वाले पैसे को फर्जीवाडा करके गायब कर देना.
इसको ध्यान में रखकर जागो पार्टी ने भ्रष्टाचार से निपटने की योजना बनाई है, परितोषण के लिए प्रावधान: पहले तो अधिकतर क्षेत्र जिनमे सरकार की ज़रूरत नही है, जो निजी क्षेत्र कर सकता है, वो सभी क्षेत्र निजीकरण द्वारा निजी क्षेत्र को हस्तांतरित किए जाएंगे. इसके अलावा विभागों और आफिसों के जनता के संपर्क में आने वाले हिस्से को भी निजी क्षेत्र को दिया जाएगा, जैसे पासपोर्ट कार्यालय, पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी, संपत्तियों का पंजीकरण, आदि. सारे सरकारी विभागों को पूर्ण रूप से कम्प्यूटरीकृत किया जाएगा, जिससे जनता की साड़ी जानकारी जनता के पास २४ घंटे उपलब्ध हो. सरकार में छुपे हुए भ्रष्टाचारियों को पहचानने के लिए निजी जासूस एजेंसियां लगाई जाएंगी और सबूतों की गुणवत्ता के आधार पर उनको भुगतान किया जाएगा. भ्रष्टाचारियों को तुंरत नौकरी से निकाला जाएगा और उनकी संपत्ति कुर्क की जाएगी और एक सीमा (जैसे रु. १० करोड़) से अधिक की कुल अवैध्य संपत्ति मिलने पर मृत्युदंड का प्रावधान.
दुर्विनियोजन के लिए: जागो पार्टी सभी प्रकार की योजनाओं और सब्सिडियों को बंद करके उन सभी से होने वाले प्रति व्यक्ति लाभ को सीधे लोगों को दे देगी, इससे सरकारी फाइलों को बनाने, संभालने, आगे-बढ़ाने वाले करोड़ों रिश्वतखोर बाबुओं की ज़रूरत नही होगी और भ्रष्टाचार में भी भारी कमी आएगी.

32. सभी वोटरों को छः सौ रूपए (रु. ६००/-) प्रति माह की सब्सिडी देने के पीछे क्या तर्क है?
यह आंकडा भारत और सभी राज्य सरकारों द्वारा दी गई कुल सब्सिडी में कुल वोटरों की संख्या को भाग देने से निकाली गई है, सरकार द्वारा सब्सिडी चीज़ों की कीमतें कम रखने के लिए दी जाती हैं इनके दो प्रकार होते हैं: मेरिट सब्सिडी और नॉन-मेरिट सब्सिडी, मेरिट सब्सिडी का लाभ पूरे देश को मिलता है वहीं नॉन-मेरिट सब्सिडी वर्ग विशेष के लिए दी जाती है, वर्तमान में सर्वाधिक खर्च नॉन-मेरिट सब्सिडियों पर हो रहा है.
वर्ष १९९४-९५ में नॉन-मेरिट संसिदी सकल घरेलू उत्पाद का दस प्रतिशत थी और इस आंकडे को आधार मानकर यदि हम आज के सकल घरेलू उत्पाद से भाग दें तो यह करीब ४ लाख करोड़ रूपए आएगा, इस आंकड़े को ४० करोड़ (वोटर जो असल में वोट करते हैं) से भाग देने पर १०,०० रूपए साल के निकलते हैं अब इसको १२ से अगर भाग दें तो प्रति माह ८३३ रूपए का आंकडा बनता है, हमने आने वाले चुनावों में वोटरों की संख्या में होने वाली बढोतरी को ध्यान में रखकर इसे ६०० रु. प्रति माह रखा है.

33. आप यह सब्सिडी उन लोगों को क्यों देना चाह्ते हैं जो गरीब नही हैं?
जागो पार्टी का मानना है की लोगों को सुविधाएं और लाभ देने के मामले में सरकार को भेदभाव नही करना चाहिए, चाहे वो अमीर हो या गरीब. अमीर को मेहनत करके पैसा कमाने की सजा नही मिलनी चाहिए, और ऐसा नही है की आज की सरकारें ऐसा नही कर रही, गैस सिलेंडरों को ही लीजिये उसमे सभी को समान रूप से सब्सिडी दी जा रही है, अमीर और गरीब का प्रश्न कहाँ है?
हमारे लिए पैसों से ज्यादा, 'सभी के साथ समान व्यवहार' का सिधांत प्रिय है, हम जानते हैं की हमारे देश के अमीरों के लिए साल के २४, ००० रूपए ज्यादा मायने नही रखते पर हम उनको उनके अधिकार से वंचित नही करेंगे, अब ये उनके ऊपर है वो इस पैसे को लें या ना लें.
और अगर हम गरीबी रेखा की कसौटी यहाँ भी लगाएँगे तो लोग रिश्वत देकर अपने आपको गैर्ब साबित करने में जुट जाएंगे जिससे देश का दोहरा नुक्सान होगा.
इसके अलावा गरीब लोग सब्सिडी छिन जाने के डर से कभी भी ऊपर उठने की कोशिश नही करेंगे.
अंत में, इससे लोगों को वोट देने का प्रोत्साहन मिलेगा.

34. इस नगद सब्सिडी के लिए क्या-क्या शर्तें हैं?
इसके लिए पाँच शर्तें हैं:
१. आप १८ वर्ष के ऊपर हों,
२. आपने कम से कम एक बार वोट किया हो,
३. आपके दो से अधिक बच्चे न हों, (अभी लागू नही, भविष्य में होगा)
४. आपके बच्चों की शिक्षा कम से कम १२ वीं तक हुई हो,
५. आपको किसी अदालत से आपराधिक मामले में सजा न मिली/हुई हो.

35. इस नगद सब्सिडी को देने का पैसा कहाँ से आएगा, जब आप टैक्स दर भी कम करने की बात करते हैं?
२००८ के आंकडों के हिसाब से यह सब्सिडी ४ लाख करोड़ की बनती है, जैसा की आप जानते हैं जागो पार्टी सरकार के दायरे से आवश्यक सेवाओ और कर्तव्यों को छोड़कर सभी कार्य निजी क्षेत्र में ले आएगी तो इस निजीकरण से पैसा आएगा,
इसके अलावा लगभग ८०% सरकारी कर्मचारियों/अधिकारीयों की ज़रूरत नही रह जाएगी, इससे बचने वाले पैसे से ही इस सब्सिडी को दिया जा सकता है (कुल २ करोड़ कर्मचारी का ८०% = १.६ करोड़ और प्रति कर्मचारी प्रति माह खर्च रु. २०,०००, सालाना २,४०,००० रु., दोनों का गुणा करने पर ३ लाख ८४ हज़ार करोड़ रु.)
दूसरे टैक्स दर कम करने से और मूलभूत सुविधाओं के विकास से उद्योग धन्दों में गति आएगी और अधिक रोज़गार उत्पन्न होंगे जिससे और अधिक लोग टैक्स जमा करेंगे, तो टैक्स दर कम करने का प्रभाव ज्यादा नही पड़ेगा.
(सरकारी कर्मचारियों के विषय में: यह छंटनी धीरे-धीरे की जाएगी, और यदि वो चाहें तो प्रशिक्षण देकर उनको निजी क्षेत्र में रोज़गार दिया जाएगा या फ़िर एच्छिक सेवानिवृत्ति ले लें. उनको समाज का एक उपयोगी सदस्य बनाने की पूरी कोशिश की जाएगी और उनको दिनभर फाइल-धकियाने वाली ज़िन्दगी से मुक्ती दी जाएगी.)

36. जागो पार्टी के अनुसार भारत में बेरोज़गारी और गरीबी के क्या कारण हैं?
भारत में इस समय ३०% लोग बेरोजगार हैं और लगभग ३०% लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं (यानि रु. ३०० प्रति माह से कम कमाते हैं). बेरोज़गारी और गरीबी दो जुड़ी हुई समस्याएँ हैं और हम इनके दो मुख्य कारण मानते हैं, एक अनियंत्रित जनसंख्या बढोतरी और दूसरा आर्थिक स्वतंत्रता में कमी.
दो से ज्यादा बच्चे होने पर भी हमारे देश में कठोर कदम नही उठाए जाते, कठोर का ये मतलब नही की लोगों को जेल में ठूंस दें बल्कि सरकार की तरफ़ से मिलने वाले फाएदों में कटौती (पूर्ण/आंशिक). इसके कारण ही हर साल हमारी जनसंख्या १.५३ करोड़ बढ़ जाती है. (जो दुनिया के कई देशों की आबाद्दी से ज्यादा है).
आर्थिक स्वतंत्रता कम होने से आसानी से उद्योग धंधे नही लगाए जा सकते, इसके ऊपर हमारी शिक्षा प्रणाली का ज़ोर व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण की तरफ़ ना होकर बाबु बनाने में है, मजदूर कानून हों या सरकारी अनुमति तरह तरह के अड़ंगे डाले गए हैं, दुनिया भर के सर्वेक्षणों और अध्ययनों में भारत अपने उद्यमीओं को सुविधाएँ और सेवाएँ देने में पिछड़ा हुआ ही सामने आया है. ऐसे में गरीबी और बेरोज़गारी ही बढेगी. (उदहारण के लिए आई.एफ़.सी. के २००५ के कारोबार करने में आसानी के सूचकांक में भारत का स्थान १५५ देशों में ११६ वाँ था, हमारा सभी पड़ोसी देश हमसे आगे रहे - पाकिस्तान ६० वाँ , बांग्लादेश ६५ वाँ, श्रीलंका ७५ वाँ, रूस ७९ वाँ, चीन ९१ वाँ).

37. पर क्या गरीबी और बेरोज़गारी को दूर करने के लिए सरकार को स्वयं ही योजनाएं नही बनानी चाहिए?
नही, हमारा मानना है की ज्यादातर सरकारी योजनाएं अक्षम, व्यर्थ और भ्रष्टाचार से भरी होती हैं. पहले तो इनको चलाने के लिए भारी टैक्स लगाए जाते हैं, जो पैसा पूँजी बनकर मुनाफा और रोज़गार बनके सामने आता वो सरकारी खाज्हने में चला जाता है, टैक्स उगाही में भ्रष्टाचार, सही नीतियों और योजनाओं को न चुनना और योजना के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार करके पूरी योजना और उसके पीछे विकास की भावना को मटियामेट कर दिया जाता है.
भारत सरकार का इस साल का बजट ५ लाख करोड़ से ज्यादा का था, ज़रा सोचिये अगर ये पैसा जनता के पास होता तो क्या हमारे देश की तस्वीर थोडी अलग होती. ६० सालों की कल्याणकारी कार्यक्रमों और योजनाओं की "सफलता" वजह से आज हम प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (क्रय शक्ति समानता के आधार पर) १७९ देशों में १२६ वें स्थान पर खड़े हैं.
इससे साफ़ पता चलता है की हमारी आर्थिक नीतियाँ ग़लत रही हैं, निजी उद्योगों को बढ़ावा देकर की हम गरीबी और बेरोज़गारी को ख़त्म कर सकते हैं.

38. आप लाभ में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों का भी निजीकरण करना चाहते हैं, ऐसा क्यों?
ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम जो लाभ कमा रहे हैं उनको उस क्षेत्र में एकाधिकार प्राप्त है, जैसे रेल, खनिज संसाधन, आदि. अब इसका यह मतलब तो नही की वो लाभ के साथ-साथ ग्राहक-संतुष्टि पर भी ध्यान दे रहे हैं, रेल को ही ले लें क्या आपकी यात्रा टिकट लेने से लेकर स्टेशन के बाहर निकलने तक सुखद होती है? इसके पीछे एक साधारण सी बात है, सार्वजनिक उपक्रम सरकारी विभागों की तरह काम करते हैं ना की निजी उपक्रमों की तरह जिनका मुनाफा ग्राहक के संतुष्ट होकर जाने से ही सुनिश्चित होता है.
वैसे भी सार्वजनिक उपक्रमों फैदा कमाने या फ़िर ग्राहकों की सेवा के लिए नही बनाया गया था, बल्कि वो तो भारत को कुछ क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनाने के लिए लाए गए थे. उस समय यह बात मानी भी जा सकती थी की निजी क्षेत्र के पास पूँजी का अभाव है पर ये बात आज मान्य नही है. भारत के अन्दर और बाहर दोनों जगह पूँजी और तकनीक लगाने वालों की अब कमी नही, फ़िर भी हम इन सफ़ेद हाथियों को ढोए चले जा रहे हैं और जनता की सहूलियत को दरकिनार कर रहे हैं.

39. निजी उद्यमों को नियंत्रित करने के लिए आप किसी नियामक तंत्र के पक्ष में हैं कि नही?
जी हाँ बिल्कुल पक्ष में हैं, सरकार अपने मुख्य कार्यों के अलावा इस तरह के नियामक तंत्रों का गठन भी करेगी जिससे:
१. देश और लोगों कि सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके,
२. प्रदुषण को रोका जा सके,
३. उत्पादकों द्वारा सह-उत्पादकों, कर्मचारियों और ग्राहकों के साथ किए जा सकने वाले अनैतिक आचरण को रोकना.
४. इसके अलावा, सभी क्षेत्रों में मानकों को प्रमाणिक करना और उद्योगों को इनतक पहुँचने के लिए प्रोत्साहित करना.
पर राष्टीय सुरक्षा और उस क्षेत्र में जिसमे कोई उद्यमी सामने ना आया हो, को छोड़कर अन्य सभी क्षत्रों से सरकार बाहर रहेगी.

40. कराधान में आप क्या बदलाव लाना चाहते हैं? टैक्स दरों में कटौती से होने वाली आय में कमीं की पूर्ति आप कैसे करेंगे?
भारत में इस समय ५० प्रकार के टैक्स हैं, इनको घटाकर १० किया जा सकता है. इसके अलावा टैक्स की दरें भी हमारे देश में बहुत अधिक हैं व्यक्तिगत आयकर ३०%, कारपोरेट टैक्स ३३%, आदि. सभी टेक्सों को घटाकर १०% कर दिया जाएगा और व्यक्तिगत आयकर की निकली सीमा को ४ लाख रूपए किया जाएगा.
टेक्सों की संख्या और दरों में कटौती के साथ टेक्स प्रक्रिया के सरलीकरण से पूँजी बढेगी जिससे रोज़गार बढेगा और विकास की दर तेज़ होगी, जिससे स्वतः टैक्स देने वालों की संख्या बढ़ जाएगी, इसके कारण टैक्स कम होने की बजाए बढेगा.

40A. आप भारत को खाद्यान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर कैसे बनाएँगे?
भूमि अधिग्रहण कानून, जोत का छोटा आकार, किसानों का निरक्षर-निर्धन होने और सही तकनीक और प्रौद्योगिकी की जानकारी का न होना आदि कुछ प्रमुख कारण है जिससे खेती हमारे देश में उद्योग नही बन पाई है. विकसित देशों के मुकाबले हमारी उपज काफ़ी कम है, खेती अब तक निर्वाह का साधन है न की मुनाफे का.
सरकार के कई कदम उठाने के बाद भी हमारी खेती वहीं की वहीं है: क्या सब्सिडी, क्या लोन, क्या न्यूनतम समर्थन मूल्य, क्या सिंचाई की सुविधाएँ, सभी कृषि को निर्वाह के स्तर से ऊपर उठाने में असफल रही. स्थिति तो इतनी ख़राब है की किसान लिया हुआ ऋण (लोन) तक चुकाने में असमर्थ हैं और मजबूरी में आत्महत्या कर रहे हैं, ज़रा सोचिये दुनिया की सबसे बड़ी और उपजाऊ ज़मीन, और किसानों की आत्महत्या दूसरी तरफ़ तो तीसरी तरफ़ भुखमरी से मरते लोग.
इसके लिए भ्रष्टाचार भी उतना ही जिम्मेदार है जितना की बिजले की कमी और अनुपलब्धता.
इसका समाधान बड़े पैमाने पर कॉर्पोरेट खेती या फ़िर अनुबंध खेती है, भूमि की खरीद पर कोई उच्चतम सीमा ना हो जो भी निजी उद्यमी या कारपोरेट घराना ज़मीन खरीदना चाहता हो वो सीधे बाज़ार दर पर छोटे किसानो से या तो खरीद ले या अनुबंध करके किराये पर ले ले.
खेती को एक उद्योग की तरह विकसित करने से अधिकाधिक निवेश, नवीनतम ज्ञान और तकनीक का प्रयोग, बड़े स्तर पर भण्डारण और विपणन की क्षमता और मुनाफा युक्त बिक्री. इससे जुड़े हुए उद्योगों और धंधों जैसे डेरी, फल-फूल, शहद, मुर्गी-पालन आदि का भी विकास आधुनिक तरीके से होता जाएगा.
इस प्रकार आज की हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था एक आधुनिक शहरी अर्थव्यवस्था में बदल जाएगी.

41. आप भारत में प्रदूषण कैसे कम करेंगे?
हम प्रदोषण को कम करने के लिए बेहद सख्त क़ानून बनाएंगे और इनका कार्यान्वयन निजी एजेंसियों द्वारा करवाया जाएगा. जुर्माने का ९०% हिस्सा इन एजेंसियों के पास फीस के रूओप में जाएगा, इस प्रकार रिश्वत देकर कोई इनसे बच नही पाएगा और यदि इनके ख़िलाफ़ हुई गडबडी की शिकायत सही पाई जाती है तो तुंरत उसको हटाया जाएगा.
इसके अलावा सिगरेट बनाने , बेचने और पीने पर प्रतिबन्ध लगाया जाएगा, क्योंकि इससे न सिर्फ़ वायु प्रदूषण होता है पर साथ ही निष्क्रिय धूम्रपान के कारण लोगों स्वच्छ हवा के अपने अधिकार से वंचित हो जाते हैं, जो बीमारियाँ मिलती हैं सो अलग. यदि भविष्य में ऐसा सम्भव हो की किसी के धूम्रपान करने से दूसरे व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव नही पड़ता तो इसपर से प्रतिबन्ध हटा लिया जाएगा.
जहाँ तक वनों का सवाल है, सरकार इस काम को स्वयं करेगी और कुल क्षेत्रफल का ३०% वन हों यह सुनिश्चित करेगी,यह काम गैर सरकारी संगठनों पर नही छोड़ा जा सकता क्योंकि उनके संसाधन और ऊर्जा सीमित होते हैं, इस काम में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त निजी एजेंसियों को लगाया जाएगा जिनका चुनाव वैश्विक निविदा प्रक्रिया के माध्यम से किया जाएगा. इसमे नए और मौजूद दोनों तरह के वन सम्मलित हैं, एजेंसियां इको-पर्यटन, वनोपज बेचकर, शोध आदि को बढ़ावा देकर आमदनी प्राप्त कर सकती हैं. साल में एक बार जंगली जानवरों की गिनती की जाएगी और यदि उनकी संख्या में कमी पाई जाती है तो उस एजेंसी का लाइसेंस रद्द किया जाएगा, और उसपर भारी जुर्माना लगाया जाएगा, इसके साथ-साथ आपराधिक मुकदमा भी चलाया जाएगा.

42. भारत पिछले पचास सालों से गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाता आया है, आप इसको क्यों हटाना चाहते हैं?
गुट-निरपेक्षता के अनुसार कोई भी देश किसी दूसरे देश के आंतरिक मामलों में दखल नही देगा, आत्म-रक्षा के अलावा किसी भी सूरत में हमला नही करेगा और किसी भी विवाद को आपसी बातचीत से निपटाया जाएगा.
गुट-निरपेक्षता की सार्थकता शीत युद्ध के दौरान थी जब संसार दो धडों में बँटा हुआ था, एक अमरीका दूसरा सोविअत रूस. पर सोविअत रूस के बिखरने के बाद इसकी सार्थकता ख़त्म हो गई है.
गुट-निरपेक्षता तभी काम कर सकती है जब सभी देश शांतिपूर्ण विचारधाराओं का अनुसरण करें पर आज हिसक विचाधारा का बोलबाला है, जे हिंसा द्वारा बदलाव लाने की पक्षधर है. गुट-निरपेक्षता इस स्थिति में कुछ भी करने में सक्षम नही है, क्योंकि वो इनको रोकने के लिए हिंसा का सहारा नही लेना चाहती, यहाँ तक की अगर कोई दूसरा गुट-निरपेक्ष देश इस हमले का शिकार होता है तो भी उसको सैन्य सहायता नही दी जाती.जिन मूल्यों की रक्षा के लिए गुट-निरपेक्षता का जन्म हुआ था वह उन्ही के ख़िलाफ़ उपयोग में आती है.
उदहारण के तौर पर, जब सोविअत रूस ने वियतनाम, क्यूबा, लोस, अफगानिस्तान आदि देशों में ज़बरजस्ती साम्यवाद फैलाने की कोशिश की तब एक भी गुट-निरपेक्ष देश इनकी मदद के लिए सामने नही आया.

43. क्या गुट-निरपेक्षता किसी देश के सत्तावादी शासन को हटा सकती है?
नही, क्योंकि ऐसा करना उस देश के आतंरिक मामलों में दखल देना होगा, और उस शासन के ख़िलाफ़ सैन्य गठबंधन गुट-निरपेक्षता की भावना के सख्त ख़िलाफ़ है, गुट-निरपेक्षता की सबसे बड़ी कमी यही है, कि किसी देश का शासन वहाँ कि जनता पर अपने विचार थोप रहा है या अत्याचार कर रहा है या जनता द्वारा निर्वाचित नही है, तब भी यह आतंरिक मामला है और इसको हल करने कि ज़िम्मेदारी वहाँ कि जनता की है.
उदहारण के लिए अफगानिस्तान को ही ले लीजिये, नाटो की फौजें वहाँ तालिबान और अल काएदा से लड़ रही हैं पर किसी भी गुट-निरपेक्ष देश की फौज वहाँ नही है. यह आकस्मिक नहीं है वरन यह गुट-निरपेक्षता की अन्तर्निहित भावना है, जो हर मुद्दे को शांतिपूर्वक निपटाना चाहती है. वो कहीं भी युद्ध करना नही चाहती और कर भी नही सकती.
गुट-निरपेक्ष देशों ने अब तक सिर्फ़ हर मुद्दे पर अपनी राय बताई है, किसी भी हिंसक विचारधारा को आप 'गंभीर चिंता व्यक्त करके' या 'केवल शांतिपूर्ण साधनों के द्वारा' बोलकर नही रोक सकते. उसका मुकाबला एकजुट होकर, रणनीति बनाकर बल का उपयोग करके ही सम्भव है.
गुट-निरपेक्षता तो देशों के राष्ट्रीय हितों (सुरक्षा, शान्ति और स्वतंत्रता) के ख़िलाफ़ है क्योंकि वो हिंसक विचारधारा के बारे में चुप है और इससे निपटने के लिए कोई भी नीति गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के पास नही है.
भारत इस विचारधारा को ५० वर्षों तक ढोता रहा पर एक भी युद्ध, एक भी हिंसक विचारधारा को रोक नही पाया, उल्टे इसपर भरोसा करके बार-बार धोखे खाता रहा, इसको हमारी विदेश नीति से हमेशा के लिए निकल देना चाहिए.


(Translated by Jago Party's Bhopal Chapter)

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