40. आप भारत को खाद्यान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर कैसे बनाएँगे?
भूमि अधिग्रहण कानून, जोत का छोटा आकार, किसानों का निरक्षर-निर्धन होने और सही तकनीक और प्रौद्योगिकी की जानकारी का न होना आदि कुछ प्रमुख कारण है जिससे खेती हमारे देश में उद्योग नही बन पाई है. विकसित देशों के मुकाबले हमारी उपज काफ़ी कम है, खेती अब तक निर्वाह का साधन है न की मुनाफे का.
सरकार के कई कदम उठाने के बाद भी हमारी खेती वहीं की वहीं है: क्या सब्सिडी, क्या लोन, क्या न्यूनतम समर्थन मूल्य, क्या सिंचाई की सुविधाएँ, सभी कृषि को निर्वाह के स्तर से ऊपर उठाने में असफल रही. स्थिति तो इतनी ख़राब है की किसान लिया हुआ ऋण (लोन) तक चुकाने में असमर्थ हैं और मजबूरी में आत्महत्या कर रहे हैं, ज़रा सोचिये दुनिया की सबसे बड़ी और उपजाऊ ज़मीन, और किसानों की आत्महत्या दूसरी तरफ़ तो तीसरी तरफ़ भुखमरी से मरते लोग.
इसके लिए भ्रष्टाचार भी उतना ही जिम्मेदार है जितना की बिजले की कमी और अनुपलब्धता.
इसका समाधान बड़े पैमाने पर कॉर्पोरेट खेती या फ़िर अनुबंध खेती है, भूमि की खरीद पर कोई उच्चतम सीमा ना हो जो भी निजी उद्यमी या कारपोरेट घराना ज़मीन खरीदना चाहता हो वो सीधे बाज़ार दर पर छोटे किसानो से या तो खरीद ले या अनुबंध करके किराये पर ले ले.
खेती को एक उद्योग की तरह विकसित करने से अधिकाधिक निवेश, नवीनतम ज्ञान और तकनीक का प्रयोग, बड़े स्तर पर भण्डारण और विपणन की क्षमता और मुनाफा युक्त बिक्री. इससे जुड़े हुए उद्योगों और धंधों जैसे डेरी, फल-फूल, शहद, मुर्गी-पालन आदि का भी विकास आधुनिक तरीके से होता जाएगा.
इस प्रकार आज की हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था एक आधुनिक शहरी अर्थव्यवस्था में बदल जाएगी.
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14 December 2008
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