29 December 2008

मेरे सपनों का भारत (by Shri R.D. Saxena)

(Blog post link for this post on Saxenaji's blog 'Spreading Fragrance of Malwa' here )

(Latent Dissent के लिए उनके आमंत्रण पर आभार सहित )

हमारे देश के अनेक सूत्र वाक्यों में से एक है - 'चरैवैती-चरैवैती' अर्थात बढ़ते चलो ... बढ़ते चलो ..

पिछले कुछ सालों में रुकावटें कमोबेश उतनी ही थी जितनी आज है लेकिन हम बढ़ते रहे | रुकावटों का रूप बदलता जा रहा है और बदले रूप से बदला लेने का कोई इंतज़ाम नहीं ; ये ही फिक्र आज सभी को है | फिर भी भरोसा है कि भविष्य हमारा है |


सपने ए पी जे अब्दुल कलाम साहब ने भी देखे और जिद थी तो साकार भी किये | उनका आभार कि उनसा स्वप्नदर्शी न होता तो हम घिसट रहे होते | सपने देखना कायदे में तो उन्होंने ही सिखाया | वरना नेहरू के स्वप्न नौकरशाहों ने कालांतर में छिन्न भिन्न कर दिए | देश की औद्योगिक सम्पन्नता निस्संदेह कुछ और होती अगर हमारी बागड़ ही खेत न उजाड़ रही होती |

आज पहली ज़रुरत सत्ताधीशों के शोधन की है | इस शुद्धिकरण के हुए बगैर हमारे स्वप्न दुःस्वप्न से बेहतर नहीं हो सकते | दलगत दलदल में बटे लोग देश के बटवारे से परे कुछ सोचते हुए नहीं दीखते | उनके चश्में निजी भविष्य पर फोकस किये हुए हैं | स्वार्थ-सिद्धि से फारिग हों तो देश दीखे ! और स्वार्थ-सिद्धि से भला कोई फारिग हो सका है आज तक ?

दूसरी जरूरत देश से भाग्यवादियों और कर्मकाण्डियों को प्रतिबंधित कर देने की है | रत्न / कुण्डली / राशि / रेखाशास्त्री / अंकशास्त्री सभी वे केंकड़े हैं जो हमारी कर्मशील संभावना की टांग खींच कर पंगु बना रहे हैं | देश आध्यात्म की ऊंचाइयां फिर से छू ले लेकिन पहले आडम्बर तो छूटे | भांति भांति के विविध नाम और रूप वाले चैनल आडम्बर परोस कर आनंदित हैं क्योंकि उन्हें देशवासियों की मूर्खता पर भरोसा है और इसी से उनकी रोटी - रोजी चलती है |

देश के बारे में सभी के सपने कमोबेश यकसां होंगे | यही कि देश की विद्वता विश्व में पूजी जाए, समादृत हो | हमारी वैज्ञानिक उपलब्धियां विश्व में सराही जाएँ | ( बहुत भरोसा है हमे अपनी प्रतिभा पर ! क्षमता है , भरोसा है तो सफलता भी निश्चित है ! ) स्वप्न है कि यह देश आर्थिक क्रान्ति का अग्रदूत बने ; जहां व्यवस्थित तंत्र हो, भ्रष्टतंत्र को कोई स्थान न हो | हर कोई अपने वतन के प्रति निष्ठा संपन्न हो | वहीं दूसरी ओर, धर्म हमारा मार्ग प्रशस्त करे न कि हमें परास्त कर दे | धर्म के प्रति किसी को कोई न तो आग्रह हो और न ही दुराव ही |

अंत में, देश के प्रति हमारा स्वाभिमान हमारी सर्वोत्कृष्ट संपत्ति बन जाए इससे बड़ा स्वप्न और क्या ?

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